भाई चारा/Bhai Chara

भाई चारा/Bhai Chara

एक छोटा सा सुन्दर टापू , जहाँ हर मौसम में हरियाली खिली रहती थी। पशु- पक्षी सभी के लिए उपयुक्त जलवायु थी। पक्षियों के लिए रसीले मीठे फल थे और खरगोश ,हिरण, गाय,बकरी, भेड़,घोड़ा सभी के खाने के लिए उपयुक्त वनस्पति और घास थी। 

सब एक साथ चरते, खेलते कूदते।वनस्पति पर्याप्त मात्रा में थी अतः भोजन को लेकर कभी उनमें झगड़ा हुआ ही नहीं। एक नदी कल-कल करती बहती और उससे शुद्ध जल पीने को मिल जाता।नदी में सुंदर-सुंदर मछलियां तैरती, कभी किनारे पर आकर सभी से बातें करती। मेंढक नदी के किनारों पर बैठ कर टर्र-टर्र करते। पेड़ों की डालियों पर बैठ कर पक्षी चहचहाते। हरी-हरी घास पर हिरण, खरगोश सभी अठखेलियां करते।पास में एक छोटा सा गाँव था, ज्यादातर लोग वहाँ खेती करते थे। खेतों की रक्षा के लिए उन्होंने कुत्ते पाल रखे थे। एक दिन शेरू कुत्ता अपनी रस्सी छुड़ा कर भाग निकला। वह रस्सी में बंधे -बंधे परेशान हो गया था। भागते-भागते वो उस टापू पर आ गया, वहाँ की सुन्दरता देख कर वह मुग्ध हो गया, वहाँ सबको खेलते हुए देखकर उसे अच्छा लगा।उसने पूछा कि - 'क्या वह भी उनके साथ रह सकता है?' सभी ने उसका स्वागत किया और कहा 'भाई आप यहाँ रह सकते हैं,बस आप सबके साथ प्रेम से रहैं,यहाँ लड़ाई झगड़े का कोई काम नहीं है।आप सामने इन्द्र धनुष देख रहे हैं।यह तभी सुंदर लगता है जब सब रंग साथ में रहते हैं।' शेरू ने सहमति में सिर हिलाया और उन सबके साथ मिलजुल कर रहने लगा,उसने फिर कभी गाँव जाने का नाम भी नहीं लिया।सब एक साथ भाईचारे से रहते थे।

प्रेषक-
पुष्पा जोशी

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