Dhobi Aur Gadha Ka Kahani

धोबी और उसके गधा:

एक धोबी था। उसके पास एक छोटा सा गधा था। धोबी को अपने गधे से बहुत प्यार था। गधा भी अपने मालिक से बहुत प्रेम करता औऱ दिनरात उसका बहुत सारा काम करता था।

एक दिन यूं ही रास्ते में चलते हुए धोबी को एक पत्थर पड़ा दिखा। पत्थर बहुत चमक रहा था।

धोबी ने पत्थर उठा कर देखा, उसे वो पत्थर चमकीला और बहुत सुंदर लगा। उसने पत्थर को एक मज़बूत धागे में बांधकर गधे के गले में लटका दिया। 

अब धोबी खुश, गधा भी खुश। दोनों मस्त भाव में चले जा रहे थे तभी अचानक एक आदमी की निगाह गधे के गले में लटके उस पत्थर पर पड़ी।

आदमी ने बहुत हैरान होकर देखा कि ये तो हीरा है। उसे बड़ा आश्चर्य हुआ लेकिन वो ये तुरंत समझ गया कि धोबी को ये नहीं पता कि गधे के गले में हीरा है।

आदमी बड़े शातिर अंदाज़ में धोबी के पास पहुंचा और उसने पूछा, अरे धोबी भाई ये गधे के गले में पत्थर क्यों लटका रखा है ....बेकार में गधे का बोझ बढ़ा रहे हो ? 

धोबी ने कहा, "हुजूर, मुझे रास्ते में मिला था, मैंने अपने प्यारे गधे के गले में उसे पहना दिया और जबसे मैंने उसके गले में ये पत्थर पहनाया है ,उस दिन से मेरा गधा बहुत खुश है औऱ मेरी हर बात मानता है ।"

आदमी समझ रहा था कि धोबी पत्थर की कीमत से एकदम अनजान है, इसलिए उसने धोबी को लालच दिया और कहा कि धोबी भाई ये पत्थर तुम मुझे दे दो, मैं तुम्हें सौ रुपए दूंगा।

धोबी सोच में पड़ गया, फिर सोचता हुआ उसने कहा कि नहीं हुजूर सौ रुपए का मैं क्या करूंगा, इस पत्थर को पहनकर मेरा गधा खुश है और गधा खुश तो मैं भी खुश हूं। 

आदमी धोबी के साथ-साथ चलता रहा, बातें करता रहा और मोल भाव बढ़ाते हुए पांच सौ रुपए तक पहुंच गया। लेकिन धोबी नहीं माना। 

आदमी भी पक्का शातिर था, लगा रहा पीछे। आदमी ने अपनी बातचीत में धोबी से एक बार भी जाहिर नहीं होने दिया कि पत्थर हीरा है। 

धोबी के साथ पीछे पीछे जाते हुए वो आदमी बीच में एक जगह रुक गया औऱ दूर से ही देखने लगा कि आख़िर ये धोबी जा कहाँ रहा है ??

कुछ देर रुककर वो फिर धोबी के पीछे लपका, लेकिन ये क्या? वहां पहुंच कर उसने देखा कि गधे के गले से पत्थर गायब है।

आदमी धोबी पर खूब जोर से चिल्लाया, अरे बेवकूफ़.. तेरे गधे के गले से पत्थर कहां गया? 

धोबी ने बहुत विनम्र होकर जवाब दिया, हुजूर जब आप पीछे रुक गए थे तभी एक और आदमी आया और उसने मुझे पचास हजार रुपए दिए और वो पत्थर लेकर चला गया।

आदमी चिल्लाया, "मूर्ख आदमी !  तुझे पता नहीं कि तू कितना बड़ा अभागा औऱ बेवकूफ़ है …वो जिसे तू पत्थर समझ रहा था वो दरअसल एक बेशकीमती हीरा था और कमसे कम दस लाख का था जिसे तूने मात्र पचास हजार में गंवा दिया।"

धोबी मुस्कुराया और उसने कहा कि हुजूर मुझे तो नहीं पता था कि वो एक कीमती हीरा है। मैंने तो उसे बस एक मामूली पत्थर समझकर पचास हजार रुपए में बेच दिया, लेकिन आपको तो अच्छी तरह ये पता था कि वो दस लाख का हीरा है, फिर आप ये सौ रुपए और पांच सौ रुपए का मोलभाव पिछले सात घंटों से क्यों कर रहे थे? सौ और पांच सौ की जगह अगर आपने पांच या दस हजार रुपए भी इसकी कीमत लगाई होती तो हो सकता था कि मैं आपको वो हीरा ख़ुशी ख़ुशी दे देता ।

और ख़ूब जोर से हँसते हुए उसने कहा कि अब आप तय कीजिए कि अभागा कौन है, मैं या आप ?

दोस्तों , हमारे जीवन में भी अक्सर यही होता है। हम अपने आस पास रहने वाले लोगों... चाहे वो दोस्त हो,रिश्तेदार हो या फ़िर परिवार के ही कोई क़रीबी सदस्य , के कीमत का समय पर सही से मूल्यांकन नहीं कर पाते नतीज़तन हमें बहुत से बेशकीमती हीरे गवांने पड़ते हैं।इसलिए शायद वक़्त पर अपने आसपास के हीरो की पहचान बेहद जरूरी है.........औऱ अगर जाने अनजाने में हमने ऐसे कुछ हीरे गवां भी दिए हैं तो उन्हें फ़िर से प्रेमपूर्वक समेटने में ही समझदारी है.......

अपने अहम को थोड़ा झुका के चलिए...
सब अपने लगेंगे ज़रा मुस्कुरा के चलिए...!!

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